Sunday, September 20, 2009

संस्कृति या विश्वरीति?

हिंदी दिवस के अवसर पर ब्लॉग अपडेट करने का मोह मुझसे भी अनदेखा नहीं किया जा सका. किन्तु परीक्षाओं और माता के ढलते सेहत के कारण मुझसे यह नहीं हो पाया. हमारे इंजिनियर-गणों में कहा जाता है न -
काल करई सों परसों कर
आज करई सों कल
इसी आदत से मजबूर हूँ :)


चलिए, आपके मस्तिष्क में खौलते सवालों को आराम दे दूं. जब जब इस प्रकार की आशा मन में उभर आये कि हिंदी में कुछ लिखा जाये, तब तब या तो समय न हो, या फिर समीप शब्दकोष न हो ^_^ लेकिन अब तो पारा चढ़ चूका है. कुछ तो लिखना ही है. बात यह है कि हिंदी में, नहीं देवनागरी लिपि में ऐसा कोई निबंध लिखे करीब ५ साल बीत चुके हैं. अब किस बारे में लिखा जाये? दरअसल लगता है यह प्रथम बारी है कि हम अपने मनचाहे विषय पर हिंदी में विस्तार कर सकें. अतः चलिए हम इसी बात पर ज़रा गौर करें कि आखिर हमारी ऐसी अवस्था क्यों हुई है?


अब अन्ग्रेजी तो मेरी मातृभाषा नहीं है. यह क्यों है कि मैं अपनी मातृभाषा मलयालम अथवा हमारे देश को एक करने वाली हिंदी भाषा से ज्यादा इस विदेशी भाषा में वार्तालाप करती हूँ? क्या हम भारतीय युवा फिरंग रहन सहन से इतने मुग्ध हैं कि हमें अपने देश की भाषा का प्रयोग करने में शर्म आती है? माना कि हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के कारण हमारी देश में शत-शत भाषाओँ, हजारों उपभाषाओं और सैकडों बोलियों का जन्म हुआ है. लेकिन हमारी सुपठित जनता भला हिंदी को छोड़, अंग्रेजी क्यों अपनाती है?
मैं यहाँ यह कह दूं कि मैं स्वयं इनमे से एक कहला सकती हूँ. मेरे निजी जीवन में करीबन सारी बातचीत ही नहीं बल्कि मेरी सोच भी अंग्रेजी में ही होती है.


हिंदी ही वह भाषा है जिसके बल पर हमारे स्वतंत्रता अग्रणियों ने देश को एक कर अंग्रेजों को घर लौटाया. और आज हम उन्ही फिरंगों कि भाषा को हमारी हिंदी से ऊपर मानते हैं! क्यों, आप नहीं देखते? विद्यालयों में अंग्रेजी ही प्रथम भाषा कहलाती है; हिंदी द्वितीय और मराठी इत्यादि तृतीय. और हाय! फिर किस अदा से छात्र अंगडाई लेते हैं जब उन्हें हिंदी drop करने का सुनहरा मौका मिलता है!


मैं साफ़ सुन सकती हूँ आपके विचार: What a fanatic! आजकल तो globalisation की हवाएं चल रही हैं दुनिया में और इस मूढ़ el Buscador ने "मेरा हिंदी महान" की रट लगा रक्खी है!


मेरा उत्तर उदहारण के तौर पर आयेगा: जर्मनी को ले लीजिये. जर्मन वहां की official भाषा है. सारे पाठ्यक्रम जर्मन भाषा में ही हैं और विदेशी विद्यार्थियों को जर्मन सीखे बिना उनके महाविद्यालयों में प्रवेश नहीं है. और फिर क्या दुनिया में कोई है जो उठकर यह तसल्ली के साथ कह सके की जर्मनी दुनिया के श्रेष्ठ तकनीकी राष्ट्रों में से एक नहीं है?


चलिए अब भाषा को छोडिये. रहन सहन के ढंग पर आ जाइये. युवा आज लता मंगेशकर या पंडित हरिप्रसाद चौरसिया को छोड़ Linkin' Park सुनने में मग्न हैं. प्रेमचंद या पु ल देशपांडे छोड़ Harry Potter पढने में मशगूल हैं. मारुती का ज़िक्र होते ही हंस पड़ते हैं और Ferrari की लाल करते हैं. Blog शुरू की तो उसका नाम Espanol में रखते हैं :) क्या यह सब आप अपने आसपास नहीं देखते? तो आप इस बारे में क्या करते हैं?


पाठक और पाठिका गण, अब भारत की बारी है. अगली सदी में दुनिया हमारी क़दमों में होगी. फिर क्या हम कहेंगे कि हमने यह ईमारत फिरंग उसूलों की नींव पर बाँधी है? क्या हम अपने पूर्वजों के किये कराये को इस प्रकार अनदेखा कर सकते हैं? कहिये, जिस देश की कोख से दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता का ही नहीं; दुसरे देशों की सैकडों भाषाओँ का जन्म हुआ, क्या वही देश अपनी संस्कृति का आदर करके भाल ऊंचा कर दुनिया में अपनी जगह पर दावा नहीं लगा सकता?


राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र से ली गयी इन पंक्तियों से हम कुछ सीखे...



सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है,
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को,
जिसके पास गरल हो।
उसको क्या, जो दन्तहीन,
विषरहित, विनीत, सरल हो ?





* अंत में एक टिपण्णी:
हिंदी हमारी इकलौती राष्ट्रभाषा नहीं है. वास्तव में हमारे देश की १६ राजभाषाएँ हैं. आप विश्वास नहीं करतें? ज़रा अपनी जेब से एक नोट निकालकर उसके पीछे छपी भाषाओँ को गिनिये. अतः किसी को गलत फहमी न हो. इनमें से कोई भी भाषा किसी दुसरे से श्रेष्ठ नहीं है.
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE


* एक और टिपण्णी:

हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष १४ सितम्बर को मनाया जाता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में इस प्रकार वर्णित है:
संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा

(हिंदी विकिपीडिया पर संपादित)


* आखरी टिपण्णी (जी हाँ, मुझे टिप्पणियों से बड़ा लगाव है)

(हिंदी विकिपीडिया बड़ा मनोरंजक पोर्टल है

2 comments:

Prasad Vaidya said...

if i have rated this article with 5 stars only, it is because there are no more stars to mark!!!

Spacegirl said...

Woah thanks!